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म॒क्षू न वह्नि॑: प्र॒जाया॑ उप॒ब्दिर॒ग्निं न न॒ग्न उप॑ सीद॒दूध॑: । सनि॑ते॒ध्मं सनि॑तो॒त वाजं॒ स ध॒र्ता ज॑ज्ञे॒ सह॑सा यवी॒युत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

makṣū na vahniḥ prajāyā upabdir agniṁ na nagna upa sīdad ūdhaḥ | sanitedhmaṁ sanitota vājaṁ sa dhartā jajñe sahasā yavīyut ||

पद पाठ

म॒क्षु । न । वह्निः॑ । प्र॒ऽजायाः॑ । उ॒प॒ब्दिः । अ॒ग्निम् । न । न॒ग्नः । उप॑ । सीद॑त् । ऊधः॑ । सनि॑ता । इ॒ध्मम् । सनि॑ता । उ॒त । वाज॑म् । सः । ध॒र्ता । ज॒ज्ञे॒ । सह॑सा । य॒वि॒ऽयुत् ॥ १०.६१.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:61» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रजायाः-वह्निः) दुहिता-कन्या का वोढा-पति (उपब्दिः) विवाह करके कन्या को पीड़ित करता है, पीडक होता हुआ (अग्निं न नग्नः) अग्नि की भाँति कामातुर हुआ (ऊधः-मक्षु न उपसीदत्) रात में कन्या को सहसा प्राप्त न हो-न छूए (इध्मं सनिता-उत वाजं सनिता सः-धर्ता) विवाहयज्ञ में समिधाओं का आधान करनेवाला-सेवन करनेवाला और अपने बल का सेवन करनेवाला वह पोषक (यवीयुत्) संयुक्त योग्य कन्या को संयुक्त्त होनेवाला (सहसा जज्ञे) योग्य बल से पुत्र को उत्पन्न करता है अर्थात् पुत्रप्राप्ति का अधिकारी बनता है, अन्यथा नहीं, इसलिए पत्नी का अनादर न करे ॥९॥
भावार्थभाषाः - कन्या का वोढा अर्थात् पति कन्या को कष्ट देनेवाला न बने और बलात् उसका स्पर्श न करे। विवाहकाल में अर्थात् विवाहसंस्कार में विधि से अग्न्याधान करके उसमें पुत्र उत्पन्न करने का अधिकारी बना है, अतः उसमें योग्य सन्तान को उत्पन्न करे, उसका कभी अनादर न करे ॥९॥